Meri Tibbat Yatra | मेरी तिब्बत यात्रा

पुस्तक समीक्षा
यात्रा वृतांत बीते हुए वक्त की तस्वीर है। जहाँ कल्पनाओं की गुंजाइश बहुत कम होती है। दुर्भाग्यवश हिंदुस्तान की परम्परा में यात्रा वृतांत का साहित्य बहुत कम मिलता है। यह काम ख़ास कर बौद्ध भिक्षुओं ने किया है। फिर भी इतनी पुरानी सभ्यता ने कमोबेश जितने यायावर देने चाहिए उससे बहुत कम दिए। बहरहाल राहुलजी ने अपने जीवन काल में बहुत यात्राएँ की हालाँकि उन यात्राओं का मक़सद उनके स्थान कला और संस्कृतिको समजने से इतर धार्मिक साहित्य माँ अध्ययन एवं ऐतिहासिक चीजों का संग्रह ज़्यादा था फिर भी उन लेखों में समकालीन परिस्थिति का बहुत ख़याल मिल जाता है। उनके इस वृतांत में रोचकता थोड़ी कम होती दिखाई देती है। लेकिन बौद्ध साहित्य का बहुत ही बड़ा ख़ज़ाना वह अपने साथ लाए जिसकी बदौलत आज बौद्ध ग्रंथागार भरे है। उन्होंने यात्रा कि दौरान तिब्बत के रहन सहन का बहुत क़रीब से जानने की कोशिश की है। १९२९ से १९३८ तक की उनकी यात्राओं का यह संकलन है। बहुत से बुरे अनुभव से गुजरते हुए एक तटस्थ और आत्मीय लेखन हमें इस किताब में मिलता है।
पुस्तक समीक्षक – @dhaval_dan
लेखक– महापंडित राहुल सांकृत्यायन
प्रकाशक– लोकभारती प्रकाशन
भाषा – हिंदी
मूल्य – 174 रुपया
पुस्तक की लिंक – Meri Tibbat Yatra 

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